मेरा मन कुछ कहता है,
निरंतर मष्तिष्क को झंझोड़ता है,
विचारों के मंथन से नए विचार आते हैं ,
उनकी अभिव्यक्ती कर रहा हूँ,
आवश्यक नहीं है कि पाठक मेरे विचारों से सहमत हो(सर्वाधिकार सुरक्षित )
Wednesday, September 11, 2013
"निरंतर" की कलम से.....: म्रत्यु भय
"निरंतर" की कलम से.....: म्रत्यु भय: अंतिम समय निकट था पलंग पर लाचार पड़ा था इतना सह चुका था इतना थक चुका था ना भावनाएं मचल रही थीं ना जीने की इच्छा बची थी...
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