Wednesday, August 22, 2012

चिंतन ,मनन के बाद !



रात भर सो नहीं पाया
विचारों से व्यथित होता रहा
किसी तरह आँख लगी ही थी
कानों में चिड़ियों की
चहचाहट सुनायी पड़ने लगी
सवेरे का उजाला ,
धूप की किरनें
मेरे कमरे में आने लगी
मेरे पास दो ही उपाय हैं
करने के लिए
या तो खिड़कियाँ खोल दूं
पर्दों को पूरी तरह हटा दूं
कमरे को ताज़ी हवा,
भरपूर उजाले से भर दूं
खुद भी प्रफुल्लित,
उल्लासित महसूस करूँ,
मन की चिंता भूल कर
अपने काम पर चल पडूँ
या फिर पर्दों को पूरी तरह
खींच दूं ,
उजाले और हवा को
कमरे में आने ही ना दूं
चादरओढ़ कर,आँख बंद कर
फिर अँधेरे में लौट जाऊं
खुद को व्यथित करूँ ?
मन की पीड़ा को बढाऊँ?
चिंतन मनन के बाद
निश्चित कर लिया
अवसाद के झंझावत में
नहीं फसूँगा
फल मिले ना मिले
कर्म करता रहूँगा,
हर्षोल्लास पाने का
प्रयत्न नहीं छोडूंगा
13-08-2012
655-15-08-12

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