मेरा मन कुछ कहता है,
निरंतर मष्तिष्क को झंझोड़ता है,
विचारों के मंथन से नए विचार आते हैं ,
उनकी अभिव्यक्ती कर रहा हूँ,
आवश्यक नहीं है कि पाठक मेरे विचारों से सहमत हो(सर्वाधिकार सुरक्षित )
Tuesday, December 13, 2011
निरंतर कह रहा .......: ना ज़मीं तेरी ना आस्मां तेरा ,तूं इक मुसाफिर यहाँ
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