मेरा मन कुछ कहता है, निरंतर मष्तिष्क को झंझोड़ता है, विचारों के मंथन से नए विचार आते हैं , उनकी अभिव्यक्ती कर रहा हूँ, आवश्यक नहीं है कि पाठक मेरे विचारों से सहमत हो(सर्वाधिकार सुरक्षित )
Tuesday, May 29, 2012
निरंतर कह रहा .......: माँ ही जननी,माँ ही पोषक
निरंतर कह रहा .......: माँ ही जननी,माँ ही पोषक: माँ ही जननी माँ ही पोषक माँ ही रक्षक माँ ही पथ प्रदर्शक माँ स्नेह सरिता माँ करूणा का सागर माँ का आशीष पारस मणी माँ ...
निरंतर कह रहा .......: सृजन और विध्वंस
निरंतर कह रहा .......: सृजन और विध्वंस: किस्मत मिट्टी की अच्छी या खराब निर्भर करेगा उस पर जिसके के हाथों में जायेगी मिट्टी जिसकी जैसी नियत वैसा ही करेगा वो एक बनाए...
निरंतर कह रहा .......: क्रोध पर कविता -मैं नहीं कहता तुम मेरी मानो
निरंतर कह रहा .......: क्रोध पर कविता -मैं नहीं कहता तुम मेरी मानो: मैं नहीं कहता तुम मेरी मानो पर ध्यान से सुन तो लो मुझे प्रतीत होता है तुम्हें क्रोध बहुत आता है आवेश में जो नहीं कहना चाहि...
निरंतर कह रहा .......: खुदा से पूछा मैंने एक दिन
निरंतर कह रहा .......: खुदा से पूछा मैंने एक दिन: खुदा से पूछा मैंने एक दिन क्यूं ज़मीं पर बसेरा नहीं बसाया उसने खुदा ने जवाब दिया इंसान के दिल से नफरत साफ़ करते करते छा...
निरंतर कह रहा .......: भ्रूण ह्त्या पर कविता-मुझे जन्म तो लेने दो
निरंतर कह रहा .......: भ्रूण ह्त्या पर कविता-मुझे जन्म तो लेने दो: मुझे जन्म तो लेने दो संसार को देखने तो दो वैसे ही बहुत कुछ सहना होगा लपलपाती नज़रों से खुद को बचाना होगा पुरुषों का तिरिस्कार...
निरंतर कह रहा .......: लक्ष्य की और
निरंतर कह रहा .......: लक्ष्य की और: कोई हाथ पकड़ता है कोई पैर खींचता है कोई बातों से विचलित करने की कोशिश तो कोई अवरोध खड़े करता हैं चारों तरफ से मुझे पथ से ...
निरंतर कह रहा .......: कौन कहता है ऊंचे पहाड़ों पर घास के मैदान नहीं होते...
निरंतर कह रहा .......: कौन कहता है ऊंचे पहाड़ों पर घास के मैदान नहीं होते...: कौन कहता है ऊंचे पहाड़ों पर घास के मैदान नहीं होते ऊंचे लोग धरातल से जुड़े नहीं होते हुए हैं इस देश में नेता गाँधी , सुभाष प...
निरंतर कह रहा .......: बिना भावनाओं के जीवन
निरंतर कह रहा .......: बिना भावनाओं के जीवन: कोई पंछी ना उड़ता सितारा ना जगमगाता चाँद बादलों के पीछे छुपा रहता सूरज कभी ना उगता तो आकाश को कौन पूछता विशाल और विस्त...
निरंतर कह रहा .......: कैक्टस
निरंतर कह रहा .......: कैक्टस: अनंत काल से कालजयी मुस्कान लिए मरुधर में निश्चल खडा हूँ धूल भरी आँधियों से अकेला लड़ रहा हूँ लड़ते हुए भी हरीतिमा का ...
Saturday, May 12, 2012
उस से नाम पूछा ,उसने बता दिया
उस से नाम पूछा
उसने बता दिया
माँ,बाप का नाम पूछा
चुप रहा
जाती, धर्म पूछा
चुप रहा
गाँव,शहर पूछा
चुप रहा
फिर धीरे से बोला
आज तक किसी से
कहा नहीं
आज तुमको कहता हूँ
नफरत किसी से
रखता नहीं
धरती को माँ,
देश को पिता,
इंसानियत को धर्म
मानता हूँ
अनाथ होते हुए भी
खुद को अनाथ नहीं
मानता हूँ
इंसान की जात हूँ
सम्मान से जीता हूँ
निरंतर यही पैगाम
देता हूँ
20-01-2001
Sunday, May 6, 2012
निरंतर कह रहा .......: कुंठा की अभिव्यक्ती
निरंतर कह रहा .......: कुंठा की अभिव्यक्ती: प्रेम , प्यार , मोहब्बत तुम कहते हो खामोश रहूँ आंसू ना बहाऊँ भावनाओं को खुले आम ना दर्शाऊँ तो , क्या ग़मों को पीता रहूँ उनका...
Wednesday, May 2, 2012
निरंतर कह रहा .......: सृजन और विध्वंस
निरंतर कह रहा .......: सृजन और विध्वंस: किस्मत मिट्टी की अच्छी या खराब निर्भर करेगा उस पर जिसके के हाथों में जायेगी मिट्टी उसकी जैसी नियत वैसा ही करेगा वो एक ब...
निरंतर कह रहा .......: झूठ का आवरण
निरंतर कह रहा .......: झूठ का आवरण: किसी ने तुम्हारे प्रशंसा में दो मीठे शब्द बोल दिए , तुम पचा नहीं पाए फूल कर कुप्पा गए बिना यह सोचे समझे कहने वाले का मंतव्य क्या था क्या व...
निरंतर कह रहा .......: क्रोध पर कविता -मैं नहीं कहता तुम मेरी मानो
निरंतर कह रहा .......: क्रोध पर कविता -मैं नहीं कहता तुम मेरी मानो: मैं नहीं कहता तुम मेरी मानो पर ध्यान से सुन तो लो मुझे प्रतीत होता है तुम्हें क्रोध बहुत आता है आवेश में जो नहीं कहना चाहि...
निरंतर कह रहा .......: जी का वन ही तो जीवन है
निरंतर कह रहा .......: जी का वन ही तो जीवन है: जीवन के सृजन कर्ता से पूछा मैंने एक दिन क्यों आपने संसार में सांस लेने वालों का नाम जीव रखा वो मुस्कारा कर बोला जी का व...
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